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लेखनी प्रतियोगिता -25-Jan-2022 टूटे सपने

कहानी : दांव-पेंच 

पेंच केवल अखाड़ों में ही नहीं चलते , न्यायालयों में भी चलते हैं । वैसे तो परिवार , राजनीति , नौकरशाही सब जगह चलते हैं मगर इस कहानी के माध्यम से अदालती दांव पेंच के कुछ करतब दिखाने के प्रयास करते हैं । 
बात सन 1970 की है । आषाढ़ के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे । जमकर बारिश हो रही थी । किसान इंद्र देवता का धन्यवाद कर रहे थे । कैसी लाली आ गई थी किसानों के चेहरों पर । उम्मीद की किरणें चमकने लगी थी । होंठों पर मुस्कान भी उभर आई थी उनके । 

परभाती अपने बैलों को सानी कर रहा था। कभी कभी प्यार से उनके मुंह को भी थपका देता था । सानी करते करते अपनी पत्नी धनिया से बोला 
"सुखिया की मां , जरा दलिया तो बना देना आज इन दोनों को । कल खेत जोतेंगे ना । थोड़ी ताकत आ जायेगी इनमें । और हां, थोड़ा सा गुड़ ला दे । अपने हाथ से खिलाऊंगा " । 

धनिया गुड़ ले आई और घूंघट में से ही गर्दन हिला कर जता दिया कि वह बैलों के लिए दलिया बना देगी । 

रात में परभाती को नींद नहीं आ रही थी । आंखों में ख्वाब सज रहे थे । इस बार राम जी मेहर कर दें तो बेड़ा पार हो जाए । आंखों में एक ही चीज रह सकती है । या तो ख्वाब या नींद । दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं । जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं हैं । इसलिए जब ख्वाबों की श्रंखला टूटी तब जाकर उसे नींद आई । 

परभाती अपने खेत जोतने लगा । इतने में पड़ोसी सरूपा और उसका बेटा हीरा जोर जोर से चिल्लाने लगे 
" अरे परभाती के बच्चे । ये क्या कर रहा है ? हमारे खेतों में हल क्यों चला रहा है" 

"भैया कछु गलतफहमी हो गई है तुमको । ये खेत तो हमारे ही हैं । बरसों से हम ही जोतते बोते आ रहे हैं " परभाती बड़ी सहजता से बोला । 

इतने में वे दोनों पास में आ गये । बोले "खबरदार , एक पैर भी आगे बढ़ाया तो खाल खींच लेंगे तुम्हारी । एक तो हमारा खेत जोत रहे हो और ऊपर से ज़बान भी लड़ा रहे हो । थोड़ी बहुत शर्म लिहाज बचा है कि नाहीं ? या सारा बेच खाया है " सरूपा गरजा और हीरा ने आगे बढ़कर बैल रोक दिये । 

परभाती ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अन्धों के सामने नाचने का क्या फायदा ? तू तू मैं मैं होने लगी दोनों में । परभाती की एक नहीं सुनी दोनों ने । अचानक हीरा ने लाठी उठाई और पल भर में परभाती की खोपड़ी रंग गई । परभाती जोर से चीखा और वहीं पर गिर पड़ा। 

हीरा ने बैल खोल दिए और हल तोड़ दिया । फिर दोनों वहां से भाग छूटे। 

अड़ोसी पड़ोसियों ने जब परभाती को बेहोश देखा तो उसे ट्रैक्टर में बिठाकर अस्पताल ले गये । वहां पर उसके सिर में टांके लगे । पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी । 

परभाती घर में अकेला मर्द था । धनिया परभाती को संभाले , घर संभाले या खेत ? गरीब लोगों को ज्यादा आराम करने की इजाजत नहीं है इस देश में । आराम तो पैसे वालों और रसूख वालों के घर का गुलाम है । इलाज करवाने के लिए भी तो पैसा चाहिए । कहां से लाएं ? इसलिए काम करना मजबूरी है चाहे भूखे पेट हों या बीमार ।

जैसे तैसे परभाती घर आया और खेत देखने चला गया । खेत में लगभग एक बीघा में हल चला हुआ था । पड़ोसी रामहेत ने बताया कि कल ही इसे हीरा ने जोता है और बाजरा बोया है । 

परभाती अवाक रह गया । उसके पुरखों के खेत में हल चलाकर सरूपा और हीरा ऐसा कर देंगे , उसे उम्मीद नहीं थी । मगर जो कुछ सामने दिख रहा है उसे वह कैसे झुठलाए । रामहेत ने सलाह दी कि कोई वकील कर ले और मुकदमा ठोक दे दोनों पर । ये तभी मानेंगे । 

परभाती दौड़ा दौड़ा वकील होशियार चंद के पास गया । होशियार चंद अपने नाम के अनुरूप बड़ा होशियार था । वकीलों में बड़ा नाम था उसका । सब लोग उसकी होशियारी के कायल थे । कानून का कीड़ा था वह ।  

परभाती ने उसे तफसील से सब बातें बताई । होशियार चंद ने कागज मांगे । परभाती के पास एक पासबुक थी बस , और कोई कागज़ नहीं था उसके पास । पासबुक में उसके पिता जी का नाम दर्ज था ।‌ जमीन अब तक उसके पिता सुक्खा की खातेदारी में ही थी । सुक्खा को मरे बीस बरस हो गए मगर परभाती का नाम अभी तक नहीं चढ़ा था । 

होशियार चंद ने कहा कि दावा करना पड़ेगा और एक प्रार्थना पत्र जमीन का सीमा ज्ञान कराने के लिए लगाना होगा । पैसा लगेगा । सोच ले । 

मरता क्या ना करता वाली कहावत लागू हो गई थी परभाती के लिए । कुछ खर्चे ऐसे होते हैं जिन पर अपना वश नहीं होता है । अगर सरूपा और हीरा बदमाशी नहीं करते तो ना तो उसके इलाज में पैसा खर्च होता और ना कोर्ट कचहरी में । मगर अब परभाती के पास और कोई विकल्प नहीं था । इसलिए मन मार कर सहमति देनी पड़ी । 

होशियार चंद ने एक दावा सहायक कलेक्टर एवं उपखंड अधिकारी की अदालत में खातेदारी अधिकारों की घोषणा एवं हुक्म इम्तनाई दवामी ( स्थायी निषेधाज्ञा) का प्रस्तुत किया और एक प्रार्थना पत्र सीमा ज्ञान का भी प्रस्तुत किया । अदालत ने प्रकरण दर्ज कर सम्मन जारी कर दिए। 

सरूपा को पता चल गया कि परभाती ने दावा कर दिया है । वैसे भी उसके खिलाफ FIR तो पहले से दर्ज थी । पुलिस उसे पकड़ लाई । मगर सरूपा ने अपना वकील चतर सिंह कर रखा था । चतर सिंह बहुत नामी गिरामी वकील था । वह वकालत कम ठेकेदारी ज्यादा करता था । मतलब ठेका लेता था केस जितवाने का । साम दाम दंड भेद किसी भी तरह से उसे बस जीतना है । उसके पास केस आने का मतलब पक्षकार की जीत पक्की । पैसा मनमर्जी का लेता था । उसने कुछ "लठैत" भी पाल रखे थे जो विपक्षी और गवाहों को धमकाने का भी काम करते थे । होली दीवाली पर "राम राम" करने अफसरों के घर भी जाया करता था । "मिठाई" भी ले जाता था साथ में । चतर सिंह का भाई चालाक सिंह भी उसी के साथ प्रैक्टिस करता था । चतर सिंह ने राजस्व अदालत और चालाक सिंह ने सिविल और फौजदारी अदालत पकड़ रखी थी । मिल बांट कर काम करते थे दोनों । 

सरूपा और हीरा की जमानत तुरंत करा दी थी उन्होंने । इसलिए सरूपा और हीरा आजाद घूम रहे थे । सरूपा चतर सिंह के पास आया और परभाती के द्वारा मुकदमा करने की आशंका व्यक्त की । चतर सिंह ने अपना मुंशी बाबू के पास भेजा और दस मिनट में ही पता चल गया कि उनके खिलाफ केस दर्ज हो चुका है और सम्मन भी जारी हो चुके हैं । उसने बाला बाला (चुपके चुपके) ही मुकदमे की प्रति निकलवा ली और उसे भलीभांति पढ़ लिया । 

चतर सिंह ने सरूपा को समझाया "जैसा मैं कहूं वैसा ही करना । अदालत से तामील कुनिंदा आएगा । उसे घर में ले जाकर अच्छी "खातिर" करना और थोड़ी "सेवा पूजा" भी कर देना । कह देना कि वह यह रिपोर्ट बना दे कि वह घर पर नहीं मिला । फिर आगे देखेंगे" । 

सरूपा चला गया । उसने वैसा ही किया जैसे वकील चतर सिंह ने बताया । तामील कुनिंदा ने सम्मन पर लिख दिया " घर पर नहीं मिला । बाहर जाना बताया " । अदालत में जब ये सम्मन लौट कर आये तो अदालत ने दुबारा सम्मन जारी करने के आदेश दे दिए ‌ अबकी बार चतर सिंह ने राजस्व अहलमद की थोड़ी "सेवा" करवाई तो सम्मन कहीं गायब हो गये । अगली तारीख पेशी पर वकील होशियार चंद ने खूब हल्ला मचाया कि उसने तो सम्मन पेश किए थे मगर वे कहां गायब हो गए ? 

नाजिम साहब ने राजस्व अहलमद को बुलवाया और सम्मन के बारे में पूछा । अहलमद ने बड़ी मासूमियत से कहा कि साहब मुझे क्या पता ? वकील साहब ने पेश किये होते तो हम उन्हें तहसील में भिजवा देते । मगर जब ये पेश ही नहीं करेंगे तो हम कर भी क्या सकते हैं " । 

अहलमद ने ये शब्द इतनी मासूमियत से कहे कि खुद होशियार चंद को विश्वास हो गया कि शायद उन्होंने ही सम्मन पेश नहीं किए हैं । होशियार चंद ने रजिस्टर्ड ए डी से सम्मन जारी करने के आदेश जारी करवा लिये । 

चतर सिंह को होशियार चंद के प्रत्येक कदम की जानकारी थी । उसने पोस्ट मैन की "सेवा" करवा दी और पैस्टमैन ने रिपोर्ट कर दी " घर पर नहीं मिला " । सम्मन लौटकर वापस अदालत आ गये । 

होशियार चंद ने अदालत को सरूपा की मक्कारी बताई और कहा कि वह गांव में ही रहता है और सबको "सेवा" से मैनेज कर रहा है । होशियार चंद के आग्रह पर अदालत ने "अखबार साया" के माध्यम से तामील कराने का हुक्म दे दिया । अब कौन से अखबार में ये सम्मन छपवायें जिससे पैसे भी कम खर्च हों और अपना काम भी हो जाए, यह प्रश्न था । दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में यदि यह सम्मन छपता तो लगभग बीस हजार रुपए का खर्च आता । बेचारा परभाती ? सब बोझ तो उसे ही उठाना पड़ रहा था । कंगाली में आटा गीला वाली बात लागू हो रही थी मगर अन्य कोई विकल्प नहीं था । इसलिए एक छोटे अखबार में छपवाकर काम चलाना पड़ा । 

इस प्रक्रिया में लगभग एक साल निकल गया । अदालतों में दिन , महीने , साल ऐसे ही निकलते रहते हैं । किसको परवाह है ?  जिस पर बीतती है वही समझ सकता है । वकीलों को पैसे से मतलब है । बाबुओं को अपनी तनख्वाह से और अफसरों को अन्य कामों से ही फुर्सत नहीं है तो फिर अदालत का काम कैसे करे ?  

अदालत ने इसको तामील मान लिया । इतनी देर में ही चतर सिंह ने अपना वकालतनामा अदालत में पेश कर दिया और दावे की प्रति मांगी । होशियार चंद ने एक प्रति चतर सिंह को दे दी । अदालत ने जवाब दावा पेश करने का हुक्म दे दिया । 

शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल "हरि"
23.1.21

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9 Comments

sunanda

01-Feb-2023 03:33 PM

very nice

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Seema Priyadarshini sahay

19-Feb-2022 05:35 PM

बहुत खूब

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Shrishti pandey

26-Jan-2022 09:16 AM

Nice one

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